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आध्यात्मिक आयाम: कैसे भारतीय माता-पिता बच्चों में आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देते हैं ?

आध्यात्मिक आयाम: कैसे भारतीय माता-पिता बच्चों में आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देते हैं ?

आध्यात्मिकता क्या है -

  • अपने आपको वास्तविक रूप में जानना ही अध्यात्म है । अपने अनुभव से यह जानना कि हम स्वयं ही अपने आनंद के स्रोत हैं । वास्तव में जहाँ से सुख-शांति और जीवन की धाराएँ प्रकट होती हैं उस आत्मा को पहचानना और मैं रूप में जानना ही आध्यात्मिकता है ।

आध्यात्मिकता क्यों जरूरी है ?

  • आध्यात्मिकता क्यों जरूरी है ? जीवन सुख-दु:ख व उतार-चढ़ाव की परिस्थितियों से भरा है । जीवन में आने वाली कठिनाइयों से यदि उबरना हो तो आध्यात्मिकता जरूरी है । आध्यात्मिकता मनुष्य को सर्वोत्तम बनाती है और जीवन के उच्चतम शिखर तक ले जाती है । यह तनाव को दूर करती है ।
  • U.S.A. के ओहियो विश्वविद्यालय के एक अध्ययन से सामने आया है कि ‘जो लोग ईश्वरीय सत्ता को मानते हैं वे ज्यादा आत्मविश्वासी और सुरक्षित रहते हैं । ऐसे लोगों का मनोबल सामान्य लोगों की तुलना में बढ़ जाता है और वे विपरीत परिस्थितियाँ तथा रोगों के आक्रमण को नास्तिक या कारणवादियों की तुलना में आसानी से सहन कर पाते हैं । अध्यात्म की शरण लेने से मनुष्य अपने को ज्यादा सुरक्षित महसूस करता है ।

बच्चों के लिए आध्यात्मिकता की जरूरत :

  • बच्चे ही भविष्य हैं, वे ही भावी नागरिक हैं, राष्ट्र के निर्माता हैं । उन्हें शिक्षित, अनुशासित तथा उचित ढाँचे में ढालने की आवश्यकता है ।
  • प्रत्येक बच्चे के भीतर उत्साह व साहस है । उसे व्यक्त करने का सुअवसर आध्यात्मिकता प्रदान करती है । शिक्षण तथा अनुशासन की सफलता का रहस्य बच्चों की आध्यात्मिक शिक्षा पर निर्भर है । आध्यात्मिक शिक्षण के अनुसार ही सांसारिक एवं व्यवहारिक शिक्षण दिया जाना चाहिए । आज के बच्चे कल के नागरिक हैं और वे अपने माता-पिता, शिक्षकों और देश को गौरवान्वित कर सकें इस हेतु उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान देना जरूरी है ।
  • कोलंबिया विश्वविद्यालय की मनोवैज्ञानिक, लिसा मिलर ने अध्ययन करके बताया कि जो बच्चे आध्यात्मिक संस्कार लेकर बड़े होते हैं, वे अधिक खुश, आशावादी, लचीले और जीवन की सामान्य-असामान्य परिस्थितियों से निपटने के लिए बेहतर ढंग से सुसज्जित होते हैं । उनको अन्य लोगों की तुलना में आघात (दुःख) कम लगते हैं ।
  • संत श्री आशारामजी बापू कहते हैं कि “बच्चों को शिक्षा के साथ यदि दीक्षा अर्थात् उचित आध्यात्मिक दिशा मिल जाये तो उन्हें सामान्य बच्चों से कई गुना अधिक फायदा होता है । उनका शरीर स्वस्थ, मन प्रसन्न और बुद्धि में तेजस्विता भर जाती है । वे संसार में महकते हुए फूलों की तरह अपनी सुवास चहुँ ओर फैलाते हैं ।”

बच्चों के आध्यात्मिक विकास में माता-पिता की भूमिका :

  • एक बच्चे के जीवन में उसकी माता उसकी प्रथम गुरु होती है और परिवार प्रथम विद्यालय होता है, जहाँ उसे मूल संस्कार प्राप्त होते हैं व सही-गलत का ज्ञान मिलता है ।
  • शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई हों या पूज्य बापूजी की माता महंगीबा, बच्चों के आध्यात्मिक विकास में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है । माता महंगीबा बापूजी को बचपन में माखन मिश्री के प्रसाद के बहाने ध्यान और भक्ति का रंग लगाती थीं । माता-पिता ही बच्चों के बौद्धिक, आध्यात्मिक व चारित्रिक गुणों के लिए जिम्मेदार होते हैं । वे बचपन से ही बच्चों को योगासन, प्राणायाम, ध्यान आदि सिखाकर आध्यात्मिक रूप से प्रशिक्षित करें ताकि बच्चे अपनी सुषुप्त शक्तियों को विकसित कर सकें और प्रतिभाशाली, लक्ष्य-उन्मुख, दृढ़ इच्छाशक्ति वाले और कर्तव्यनिष्ठ बन सकें ।
  • बच्चों के शरीर तथा मन को स्वस्थ बनाना, उनमें आत्मविश्वास, नैतिकता, उत्साह एवं सच्चरित्रता की स्थापना करना माता-पिता का कर्तव्य है । उनको वास्तविक जीवन से अवगत कराना ही माता पिता का उद्देश्य होना चाहिए । माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को पारिवारिक, धार्मिक अनुष्ठानों में सम्मिलित करें तथा उन्हें अपने देवी-देवताओं के बारे में बतायें । आत्मज्ञानी संतों एवं भगवत् भक्तों का जीवन-चरित्र बतायें । इससे बच्चों में धर्म के प्रति आस्था बढ़ती है ।

बच्चों के आध्यात्मिक विकास के लिए माता-पिता निम्न तरीके अपना सकते हैं -

  • अपने बच्चों को आध्यात्मिक कहानियाँ सुनायें ।
  • घर में समय-समय पर धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन करें ।
  • दैनिक घटनाओं को आध्यात्मिकता से जोड़ें ।
  • आत्मज्ञानी संतों, भगवत् भक्तों एवं महापुरुषों के जीवन-चरित्र सुनायें ।
  • बच्चों को योग, ध्यान, प्राणायाम करना एवं सूर्यदेव को अर्घ्य देना सिखायें ।
  • बच्चें अच्छी संगति में हों इसका विशेष ध्यान रखें ।
  • गीता-भागवत, रामायण आदि शास्त्रों के अध्ययन की आदत डालें ।
  • स्वास्थ्य संबंधी जरूरी नियमों की जानकारी दें ।
  • समय- समय पर संत श्री आशारामजी आश्रमों में लगने वाले विद्यार्थी उज्ज्वल भविष्य निर्माण शिविर में अवश्य भाग दिलाएं ।
  • बापूजी की प्रेरणा से चलाये जाने वाले बाल संस्कार केन्द्रों में बच्चों को भेजें ।

अनैतिकता से बचाव : आध्यात्मिक विकास की अनिवार्य शर्त

  • अनेक जन्मों के मलिन संस्कारों के प्रभाव से बच्चों में कई प्रकार के चारित्रिक दोष देखने में आते हैं । आध्यात्मिक विकास के लिए बच्चों के इन दोषों के परिमार्जन की नितांत आवश्यकता है । वर्तमान युग के अनैतिकता के वातावरण को देखते हुए यह बात एक कठिन चुनौती जैसा प्रतीत होता है ।
  • उसके ऊपर जब समाज में प्रेम के नाम पर अश्लीलता, अनैतिकता भरा ‘वैलेंटाइन डे’ जैसा उत्सव मनाया जाने लगे तो बच्चों में आध्यात्मिक संस्कारों का लोप हो जाना स्वाभाविक है ।
  • इस गंभीर समस्या का समाधान संत श्री आशारामजी बापू ने निकाल ही लिया । वर्ष 2007 में उन्होंने 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे के बदले ‘मातृ- पितृ पूजन दिवस’ मनाने की पहल की ।
  • उनके संकल्प और सत्प्रयासों से समाज में गिरती हुई आध्यात्मिकता का स्तर फिर से बुलंदियों की ओर बढ़ने लगा है ।

निष्कर्ष :

  • बच्चों में आध्यात्मिकता का पोषण उनके नैतिक विकास के लिए एक बुनियादी तरीका है । आध्यात्मिकता से ही उन्हें जीवन के हर क्षेत्र में उचित दिशा मिलती है इसलिए आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ आध्यात्मिक शिक्षा भी आवश्यक है । इस हेतु बच्चों को बापूजी जैसे संतों के मार्गदर्शन में माता पिता का सत्प्रयास विश्वमानव के परम कल्याण में बहुत उपयोगी है ।

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