- लौकिक रक्षाबंधन तो हर कोई मनाता है किन्तु इस दिन शिष्य भी अपने सद्गुरु को मन-ही-मन राखी बाँधकर रक्षा की प्रार्थना करता है ।
- पूज्य बापूजी कहते हैं : “राखी बँधवाना तो सरल काम है लेकिन राखी का बदला चुकाना बड़ा कठिन है ।”
- लौकिक भाई को राखी बाँध दोगे, 100-200 रुपये दे देगा, उसकी छुट्टी, तुम्हारी छुट्टी लेकिन यहाँ जल्दी से छुट्टी नहीं होती ।
- राखी बाँधने का मतलब है कि हमारी रक्षा करना और तुम्हारी रक्षा तो बाबा मैं शरीर से तो हमेशा न कर पाऊँगा । शरीर तुम्हारा कहीं होगा और मैं कहीं होऊँगा और तुम्हारी शारीरिक रक्षा के लिए तो तुम्हारे पास बहुत लोग हैं । सिर्फ शारीरिक रक्षा नहीं लेकिन मैं चाहता हूँ तुम्हारी आध्यात्मिकता की रक्षा हो, आध्यात्मिकता का ह्रास न हो ।
- लक्ष्मी जी कुछ दिन बलि के घर रहीं और बलि से अपनी बात मनवा ली । ऐसे हम भी तुम्हारी बातें मानते हैं ताकि तुम भी कभी हमारी बातें मानो ।
- ऐसी चेष्टा न करो कि तुम्हारा देह-अभिमान बढे । ऐसा आहार न करो कि तुम्हारी भक्ति पर चोट लगे । ऐसा व्यवहार न करो कि तुम्हारा समय व्यर्थ की बातों में जाए । ऐसा न सोचो कि तुम्हारी शक्ति का ह्रास हो । मैं ऐसा चाहता हूँ कि मेरा शरीर न रहे, मैं तुम्हारे पास न होऊँ तब भी तुम्हारी सुरक्षा होती रहे ।
- ऐसा तुम्हारे पास चरित्र का बल, तपस्या, साधना, पवित्रता का बल, ज्ञान का भंडार होना चाहिए कि दुःख के बादल गरजने लग जायें और बरसने भी लग जायें फिर भी तुम्हारा चित्त चलित न हो ।