- अपने पूज्य संत श्री आशारामजी बापू के जन्म के पहले अज्ञात सौदागर एक शाही झूला अनुनय-विनय करके दे गया, बाद में पूज्य श्री अवतरित हुए। नाम रखा गया ‘आसुमल’ ।
- ʹयह तो महान संत बनेगा,लोगों का उद्धार करेगा….ʹ ऐसी भविष्यवाणी कुलगुरु ने कही ।
- तीन वर्ष की उम्र में बालक आसुमल ने चौथी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों के बीच चौथी कक्षा की कविता सुनाकर शिक्षक एवं पूरी कक्षा को चकित कर दिया ।
- आठ-दस वर्ष की उम्र में ऋद्धि-सिद्धियाँ अनजाने में आविर्भूत हो जाया करती थीं ।
- 22 वर्ष की उम्र तक उन्होंने भिन्न-भिन्न आध्यात्मिक यात्राएँ की और कुछ उपलब्धि पायी ।
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- वात्सल्यमयी माँ महँगीबा का दुलार, घर पर ही रखने के लिए रिश्तेदारों की पुरजोर कोशिश एवं नवविवाहिता धर्मपत्नी श्री लक्ष्मी देवी का त्यागपूर्ण अनुराग भी उनको अपने लक्ष्य पर पहुँचने के लिए गृहत्याग से रोक न सका । गिरि गुफाओं, कन्दराओं को छानते हुए, कंटकीले एवं पथरीले मार्गों पर पैदल यात्रा करते हुए, अनेक साधु-संतों का सम्पर्क करते हुए आखिर वे इसी जीवन में जीवनदाता से एकाकार बने हुए आत्मसाक्षात्कारी ब्रह्मवेत्ता पूज्यपाद स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज के पास नैनीताल के अरण्य में पहुँच ही गये ।
- आध्यात्मिक यात्राओं एवं कसौटियों से वे खरे उतरे । साधना की विभिन्न घाटियों को पार करते हुए सम्वत् 2021,अश्विन शुक्ल पक्ष द्वितीय को उन्होंने अपना परम ध्येय हासिल कर लिया…. परमात्म-साक्षात्कार कर लिया ।
- तमाम विघ्न बाधाएँ, प्रलोभन एवं ईर्ष्यालुओं की ईर्ष्याएँ, निंदक व जलने वालों की अफवाहें उन्हें आत्मसुख से, प्रभु प्यालियाँ बाँटने के पवित्र कार्य से रोक न सकीं । उनके ज्ञानलोक से केवल भारत ही नहीं वरन् पूरे विश्व के मानव लाभान्वित हो रहे हैं ।
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➢ ‘हमें लेने हैं अच्छे संस्कार’ साहित्य से…