Power of Brahmacharya [Celibacy Superpowers]. Miracles of Brahmacharya in Hindi.

हैहयवंशी क्षत्रिय राजकुमार परपुरंजय एक दिन वन में आखेट के लिए गये । उस गहन वन में घूमते हुए राजकुमार ने एक काले रंग के हिंसक पशु को देखा और बाण छोड़ दिया ।

पास जाने पर उन्होंने पाया कि अनजाने में उन्होंने हिंसक पशु का चर्म ओढ़े हुए एक मुनि को मार डाला है । अज्ञानवश हुए इस पापकर्म से राजकुमार व्यथित हो मूर्च्छित हो गये।

             होश आने पर परपुरंजय ने सुविख्यात हैहयवंशी राजाओं के पास जाकर इस दुर्घटना का यथावत् वर्णन किया । ‘फल-मूल का आहार करनेवाले एक मुनि की हिंसा हो गयी ।’

यह सुनकर वे सभी क्षत्रिय मन-ही- मन बहुत दुःखी हुए तथा जहाँ-तहाँ यह पता लगाते हुए कि ये मुनि किनके पुत्र हैं,शीघ्र ही कश्यपनंदन अरिष्टनेमि के आश्रम पर पहुँचे । वहाँ नियमपूर्वक उत्तम व्रत का पालन करनेवाले ऋषि को प्रणाम करके वे सब खड़े हो गये।

जब ऋषि उनका सत्कार करने लगे, तब उन्होंने कहा : ‘हम अपने दूषितकर्म के कारण आपसे सत्कार पाने योग्य नहीं रह गये हैं । हमसे एक ब्राह्मण की हत्या हो गयी है ।’

ऋषि ने पूछा : ‘आप लोगों से ब्राह्मण की हत्या कैसे हुई और वह मरा हुआ ब्राह्मण कहाँ है ?’

              तब क्षत्रियों ने मुनि के वध का सारा समाचार उनसे सच-सच कह दिया और ऋषि को साथ लेकर सभी उस स्थान पर आये, जहाँ मुनि की हत्या हुई थी । किंतु क्षत्रियों को वहाँ मरे हुए मुनि की लाश नहीं मिली ।

अपनी असावधानी के लिए उन्हें और भी ग्लानि हुई । वे सब लज्जित होकर इधर-उधर उसकी खोज करने लगे । उनकी चेतना लुप्त-सी हो गयी । उन क्षत्रियों को अत्यंत दुःखी देखकर ऋषि अरिष्टनेमि ने अपने पुत्र को बुलाया और बोले : ‘परपुरंजय ! तुमने जिसे मार डाला था, वह यही ब्राह्मण तो नहीं है ? राजाओ ! यह तपस्वी मेरा ही पुत्र है ।’

             मुनि को जीवित हुआ देख क्षत्रिय बड़े विस्मित हुए और कहने लगे :‘यह तो बड़े आश्चर्य की बात है । ये मरे हुए मुनि यहाँ कैसे लाये गये और किस प्रकार इन्हें जीवन मिला ? क्या यह तपस्या की ही शक्ति है,जिससे ये फिर जीवित हो गये ? ब्रह्मन् ! हम सब यह रहस्य सुनना चाहते हैं ? यदि हम सुनने योग्य हों तो कहिये ।’

             तब महर्षि ने उन क्षत्रियों से कहा : ‘राजाओ ! हम लोगों पर मृत्यु का वश नहीं चलता, इसका कारण संक्षेप से बताता हूँ । हम शुद्ध आचार-विचार से रहते हैं, आलस्य से रहित हैं, प्रतिदिन संध्योपासन के परायण रहते हैं, शुद्ध अन्न खाते हैं और शुद्ध रीति से न्यायपूर्वक धनोपार्जन करते हैं ।

हम लोग सदा ब्रह्मचर्यव्रत के पालन में लगे रहते हैं तथा केवल सत्य को ही जानते हैं, कभी झूठ में मन नहीं लगाते और सदा अपने धर्म का पालन करते हैं । अतः मृत्यु से हमें कोई भय नहीं है । हम विद्वानों तथा ब्राह्मणों के गुण ही प्रकट करते हैं, उनके अवगुण पर दृष्टि नहीं डालते । हम अतिथियों को अन्न-जल से तृप्त करते हैं । हमारे ऊपर जिनके भरण-पोषण का भार है, उन्हें हम पूरा भोजन देते हैं और उन्हें भोजन कराने से बचा हुआ अन्न हम खाते हैं ।

हम सदा शम, दम, क्षमा,तीर्थ-सेवन और दान में तत्पर रहनेवाले हैं एवं पवित्र देश में निवास करते हैं ।

हम सदा तेजस्वी सत्पुरुषों का ही संग करते हैं, इसलिए हमें मृत्यु से भय नहीं होता । ईर्ष्यारहित राजाओ ! अब तुम सब लोग यहाँ से जाओ,तुम्हें ब्रह्महत्या के पाप से भय नहीं रहा ।’

                यह सुनकर उन हैहयवंशी क्षत्रियों ने महामुनि अरिष्टनेमि का सम्मानव पूजन किया और प्रसन्न होकर अपने स्थान को चले गये ।