~पूज्य संत श्री आशारामजी बापूजी

महात्मा बुद्ध (Mahatma Buddha)  यात्रा करते-करते एक नगर में पहुँचे। वहाँ के राजा को उसके बूढ़े वजीर ने कहा :”महात्मा बुद्ध (Mahatma Buddha) आ रहे हैं। आप उनके स्वागत को चलें। उनके नगर-प्रवेश के समय नगर में आपकी उपस्थिति आवश्यक है।”

उस सम्राट को अपने धन- वैभव का बड़ा घमंड था।
उसने कहा :”उस भिखमंगे के पास ऐसा क्या है जो मैं स्वागत को जाऊँ ? मेरे पास किस चीज की कमी है ? उसे मुझसे मिलना हो तो वह स्वयं ही मिलने आये।”

बूढ़े एवं ज्ञानवृद्ध वजीर को राजा की मति पर तरस आया कि ‘मेरा कैसा दुर्भाग्य है जो मैं ऐसे राजा का वजीर हूँ।’ उसकी आँखे आँसुओं से भर आयीं। राजा ने वजीर को कभी रोते नहीं देखा था । आज उसे रोते देखकर बहुत हैरान हुआ।

उसने पूछा :”तुम क्यों रोते हो ?”

वजीर ने कहा :”पहले आप मेरा त्यागपत्र स्वीकार कर लें। आपकी सेवा से मैं मुक्त होना चाहता हूँ।”

वजीर राजा के लिए बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति था। राज्य-व्यवस्था को चलाने में वही मेहनत करता था। राजा तो शराब-कबाब, सुंदरियों के नाच-गान और भोग-विलास में ही लिप्त रहता था। वजीर की बुध्दिमत्ता से ही राज्य बड़ा सुव्यवस्थित, सुशासित था। वह यदि पद से हट जाये तो राज्य-व्यवस्था चरमरा जाने वाली थी ।

राजा ने कहा :”नहीं-नहीं, क्या इतनी-सी बात से त्यागपत्र दोगे ? मेरी बात में तो मुझे कोई गलती दिख नहीं रही।”

“गलती बहुत है। मैं त्यागपत्र देकर गलती बताऊँगा क्योंकि जब तक त्यागपत्र नहीं देता, तब तक आपका नौकर हूँ और एक नौकर से आप गलती सुनने की हिम्मत नहीं जुटा पायेंगे।”

“तुम गलती पहले बताओ, मैं नाराज नहीं होऊँगा। मैं पहले ही क्षमा कर देता हूँ।”

“तुम्हारी गलती यह है कि तुम्हारे पास जो है, वह बुद्ध के पास भी था। उसको वे लात मार आये, तुम अभी लात नहीं मार सके हो और बुद्ध के पास जो है, उसे पाने में तुम्हें अभी कई जन्म लग जायेंगे। पाना तो दूर, बुद्ध के पास जो है उसे तुम अभी देखने की भी क्षमता नहीं रखते हो। तुम्हारे पास वो आँख ही नहीं है जो देख सके कि बुद्ध के पास क्या है ! इसलिए तुम समझ रहे हो कि बुद्ध भिखारी हैं। मैं कहता हूँ तुम भिखारी हो और बुद्ध सम्राट हैं। या तो चलो मेरे साथ बुद्ध के स्वागत को, उनके चरणों में सिर रखो या मेरा त्यागपत्र स्वीकार करो। मैं ऐसे व्यक्ति के नीचे काम नहीं कर सकता जो इतना अंधा है।”

– वजीर ने बड़ी कीमती बात कही। तुम्हारे पास कितना ही धन हो तो भी जिनके पास रामधन है उनके सामने तुम गरीब हो। तुम्हारा पद कितना ही ऊँचा हो तो भी जिनको आत्मपद मिल गया है उनके आगे तुम्हारी क्या हैसियत है ?

~लोक कल्याण सेतु/सित.-अक्टू. २००६