[Chinese Traveller  Hiuen Tsang & Nalanda Vishwavidyalaya]

➠ आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व पटना (बिहार) में स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में चीन, जापान, कोरिया, सियाम, लंका, तुर्किस्तान व यूनान आदि देशों से विद्यार्थी ज्ञानार्जन के लिए आते थे । प्रसिद्ध चीनी यात्री हुएन्सांग (Chinese Traveller Hiuen Tsang) लिखता है कि ‘ संसार में ऐसा एक भी देश नहीं है जो नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda Vishwavidyalaya) को न जानता हो अथवा ऐसी कोई जाति नहीं है कि जिसका एक भी विद्यार्थी नालंदा से शिक्षा लेकर महापंडित न बना हो ।‘ ईसा की सातवीं शताब्दी में इस विश्वविद्यालय में 10 हजार से अधिक विद्यार्थी पढ़ते थे ।

➠ नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda Vishwavidyalaya) में हुएन्सांग (Hiuen Tsang) चीन से आये थे । यहाँ विद्यार्थियों और अध्यापकों के मधुर व्यवहार से इन चीनी विद्वान को एक दिन भी ऐसा न लगा कि वह परदेश में हैं । हुएन्सांग (Hiuen Tsang) पढ़कर चीन लौटते समय बहुत-सी बुद्धमूर्तियाँ और बौद्धधर्म के ग्रंथों की हस्त-प्रतिलिपियाँ अपने साथ लेते गये । उन्हें विदा करने के लिए विश्वविद्यालय के अनेकों विद्यार्थी सिंधु नदी के मुहाने तक आ रहे थे  परंतु अकस्मात् ऐसा हुआ कि आधे रास्ते में ही जहाज तूफान में फँस गया और उसमें पानी भरने लगा तथा जहाज पानी में डूबने लगा । हुएन्सांग की सारी मेहनत पर पानी फिरनेवाला था ।

➠ उस समय नालंदा के विद्यार्थियों ने असाधारण, विश्वकल्याण की भावना और त्याग का परिचय दिया ।

➠ उन्होंने सोचा कि यदि ये मूर्तियाँ और अमूल्य धर्मग्रंथ नदी में डूब गए तो चीन में धर्म का प्रसार नहीं हो पायेगा । इसलिए अपना सर्वस्व त्यागकर उस स्मारक की रक्षा करने का उन्होंने संकल्प किया और नश्वर देह का मोह छोड़ अमर जीवन की प्राप्ति के लिए वे नदी के प्रवाह में कूद पड़े और देखते-देखते उनके पवित्र शरीर नदीतल में प्रविष्ट हो गए । अपनी देह सरिता को अर्पण करके उन्होंने जहाज के भार को हल्का किया और हुएन्सांग व धर्मग्रंथों की रक्षा हुई ।

➠ विद्यार्थियों का यह अपूर्व आत्मोत्सर्ग भारतीय संस्कृति और नालंदा विश्वविद्यालय के शिक्षण का ही प्रभाव था । इस प्रकार हमारे आर्य ब्रह्मचारी विद्यार्थियों के बलिदान से चीन देश में धर्म-ज्ञान का प्रचार-प्रसार हुआ ।

धन्य है भारतीय संस्कृति और धन्य हैं भारत के विद्यार्थी !

– लोक कल्याण सेतु, दिसम्बर 2002