- आर्तत्राण नाम का विद्यार्थी संस्कृत पढ़ने के लिए पंडित जी के पास जाता था ।
- पंडित जी को पूजा के लिए बेलपत्र, तुलसीदल, फूल आदि की आवश्यकता पड़ती थी तो विद्यार्थी आसपास से ले आते थे ।
- एक दिन फूल तोड़ने के लिए 5-7 विद्यार्थी मिलकर एक बगीचे में घुस गए । विद्यार्थी फूल तोड़कर निकल रहे थे कि बगीचे का माली वहाँ आ पहुँचा ।
- दूसरे सब विद्यार्थी तो भाग निकले लेकिन बालक आर्तत्राण चुपचाप वहाँ खड़ा हो गया । माली ने देखा कि ‘जब एक बालक खड़ा ही है तो औरों का पीछा करने की क्या जरूरत !”
- माली ने पूछा :”तुमने फूल तोड़ा ?”
- “हाँ, तोड़ा है ।”
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- “क्यों तोड़ा ? क्या यह जान के तोड़ा कि यह दूसरे का बगीचा है ?”
- “हाँ, जान के तोड़ा है ।”
- और सब विद्यार्थी तो बच गये लेकिन सारी डांट-फटकार, मार आर्तत्राण को ही मिली । बालक चुपचाप रहा, कुछ बोला नहीं, प्रतिकार भी नहीं किया, रोया भी नहीं, किसी से शिकायत तक न की, सबकुछ सह गया । फिर भी उसे इस बात की ख़ुशी हुई कि ‘मैं पिट गया तो पिट गया पर मेरे साथी तो पिटने से बच गए ।’ उसने यह भी नहीं कहा कि वे पंडित जी के लिए फूल तोड़ने आये थे ।
- पंडित जी की भी बदनामी नहीं हुई, अपने साथियों का नाम भी नहीं बताया और सबके बदले स्वयं कष्ट सहा ।
- इसी को बोलते हैं : होनहार बिरबान के होत चिकने पात । जो पौधा आगे चलकर बड़ा वृक्ष होने वाला होता है, छोटा होने पर भी उसके पत्तों में कुछ-न-कुछ चिकनाई होती है ।
- आर्तत्राण ने सिद्ध कर दिखाया कि परिस्थितियाँ परिवर्तनशील हैं । परिस्थितियों को जानने वाला अपरिवर्तनशील साक्षी, सत्-चित्त-आनंद आत्मा है ।
- वही आर्तत्राण आगे चलकर ब्रह्ममूर्ति श्री उड़िया बाबाजी के नाम से सुप्रसिद्ध हुए ।
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– लोक कल्याण सेतु, दिसम्बर 2015
गुरु-सन्देश – होनहार बिरबान के होत चिकने पात ।
“जो पौधा आगे चलकर बड़ा वृक्ष होने वाला होता है, छोटा होने पर भी उसके पत्तों में कुछ-न-कुछ चिकनाई होती है ।” – पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
“जो पौधा आगे चलकर बड़ा वृक्ष होने वाला होता है, छोटा होने पर भी उसके पत्तों में कुछ-न-कुछ चिकनाई होती है ।” – पूज्य संत श्री आशारामजी बापू