- अभ्यास में अपार शक्ति है । अभ्यास इस बात का करना है कि मित्र और शत्रु में,अपने और पराये में जो चेतन चमक रहा है उसका बार बार स्मरण होता रहे ।
- आज जो असाध्य है,वही अभ्यास के बल से सरल और सुगम हो सकता है । किन्हीं संत ने एक ऐसा आदमी देखा जो अपने कंधों पर विशालकाय भैंसों को उठा लेता था ।
- संत ने पूछा : “कहाँ तू पाँच-साढ़े पाँच फुट का हलका-फुलका आदमी और कहाँ यह विशालकाय भैंसा ! फिर भी तू अपने कंधे पर इसे ऐसे कैसे उठा लेता है ?”
- वह आदमी कहता है : “बाबाजी ! सच मानिये, यह भैंसा जब पैदा हुआ था तो छोटा और प्यारा-प्यारा सा था । तभी से मैं इसे उठाता आया हूँ । नित्य अभ्यास से आज यह विशालकाय भैंसा उठाना मेरे लिए सहज हो गया,भले ही इसे उठा लेना औरों के लिए बड़ा चमत्कार का काम बन जाय ।”
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- इसे ही कहते हैं – अभ्यास की बलिहारी !
- जब आप साइकिल चलाना सीख रहे थे, उस समय यदि सोच लिया होता कि आप नहीं चला पायेंगे या गिर जायेंगे तो क्या आप कुशल साइकिल सवार बन पाते ?
- साइकिल चलाना सीखते वक्त आप शरीर को मोड़ते-झकझोरते हैं, कभी गिरते हैं, छोटी-मोटी चोट भी खा लेते हैं और आखिर साइकिल चलाना सीख ही जाते हैं । फिर बाइक भी चला लेते हैं कार भी चला लेते हैं । यह सब अभ्यास का ही तो प्रभाव है ।
- अभ्यास बल से ही दुबला-पतला आदमी भी विशालकाय लोहे के यंत्र चला लेता है, लकड़ी भी अनेकानेक वस्तुएँ एवं गृहउपयोगी उपकरण बना लेता है, नौका को पानी मे दौड़ा लेता है, हवाई जहाज को हवा में उड़ा लेता है ।