How to Practice Brahmacharya For Married in Hindi - Rules
- गृहस्थ दंपति के लिए ब्रह्मचर्य-व्रत (Brahmacharya) की सफलता हेतु निम्नलिखित नियमों का पालन करना बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगा :
- पति-पत्नी को अलग-अलग कमरों में सोना चाहिए और सम्पूर्ण एकांत में साथ-साथ नहीं रहना चाहिए ।
- पारिवारिक प्रार्थना : दोनों को अथवा परिवार के सभी लोगों को साथ मिलकर दिन में दो बार प्रार्थना-स्तवन, शास्त्र-पठन आदि करना चाहिए । इससे पति-पत्नी एक-दूसरे को भोग के साधन के रूप में न देखकर जगतरूपी धर्मशाला में कुछ समय के लिए मिलने वाले दो पथिकों के रूप में अनुभव करेंगे । इससे पति-पत्नी के बीच भोग प्रधान संबंध छूट जायेगा और परस्पर निर्मल, दिव्य प्रेम संबंध सरलता से जन्मेगा व स्थिर होगा ।
- भूतकाल की रति-क्रीड़ाओं और शृंगार-चेष्टाओं की स्मृति को मिटा देना चाहिए ।
- एक-दूसरे को स्त्री या पुरुष रूप में देखने के बदले देह के साथ रहने वाले देही (परमात्मा) रूप में देखने का प्रयत्न करना चाहिए ।
- शरीर और मन को निरन्तर सत्कार्य या सेवाकार्य में जोड़े रखना चाहिए । अपने इष्टमंत्र के जप में मन को रत रखना चाहिए । इससे कामवृत्ति नहीं जगेगी, साथ ही कामवासना पर विजय कराने वाली आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती जायेगी ।
- संयमी जीवन शुरू करने पर पति को कभी स्वप्नदोष हो जाए तो उससे क्षुब्ध नहीं होना चाहिए । इस समय पत्नी के साथ क्रीड़ा कर लेना उचित है, ऐसा समझना योग्य नहीं है । ऐसा सोचने पर तो ब्रह्मचर्य की उपासना हो ही नहीं सकती ।
15+ Best Rules of Brahmcaharya [Rules of Celibacy in Hindi]
- इन नियमों (Rules) में Brahmacharya Palan Ke Niyam/ Upaye, Brahmcharya Diet, Yogasana, Mantra for Brahmacharya यह सब दिया हुआ हैं ।
- ब्रह्मलीन ब्रह्मनिष्ठ स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज के प्रवचन से…
- ऋषियों का कथन है कि ‘ब्रह्मचर्य ब्रह्म-परमात्मा के दर्शन का द्वार है, उसका पालन करना अत्यंत आवश्यक है । इसलिए यहाँ हम ब्रह्मचर्य-पालन के कुछ सरल नियमों एवं उपायों की चर्चा करेंगे :
- ब्रह्मचर्य तन से अधिक मन पर आधारित है । इसलिए मन को नियंत्रण में रखो और अपने सामने ऊँचे आदर्श रखो ।
- आँख और कान मन के मुख्यमंत्री हैं । इसलिए गंदे चित्र व भद्दे दृश्य देखने तथा अभद्र बातें सुनने से सावधानी पूर्वक बचो ।
- मन को सदैव कुछ-न-कुछ चाहिए । अवकाश में मन प्रायः मलिन हो जाता है । अतः शुभ कर्म करने में तत्पर रहो व भगवन्नाम-जप में लगे रहो ।
- ‘जैसा खाये अन्न, वैसा बने मन ।’ – यह कहावत एकदम सत्य है । गरम मसाले, चटनियाँ, अधिक गरम भोजन तथा मांस, मछली, अंडे, चाय कॉफी, फास्टफूड आदि का सेवन बिल्कुल न करो ।
- भोजन हल्का व चिकना स्निग्ध हो । रात का खाना सोने से कम-से-कम दो घंटे पहले खाओ ।
- दूध भी एक प्रकार का भोजन है । भोजन और दूध के बीच में तीन घंटे का अंतर होना चाहिए ।
- वेश का प्रभाव तन तथा मन दोनों पर पड़ता है । इसलिए सादे, साफ और सूती वस्त्र पहनो । खादी के वस्त्र पहनो तो और भी अच्छा है । सिंथेटिक वस्त्र मत पहनो । खादी, सूती, ऊनी वस्त्रों से जीवनीशक्ति की रक्षा होती है व सिंथेटिक आदि अन्य प्रकार के वस्त्रों से उनका ह्रास होता है ।
- लँगोटी बाँधना अत्यंत लाभदायक है । सीधे, रीढ़ के सहारे तो कभी न सोओ, हमेशा करवट लेकर ही सोओ । यदि चारपाई पर सोते हो तो वह सख्त होनी चाहिए ।
- प्रातः जल्दी उठो । प्रभात में कदापि न सोओ । वीर्यपात प्रायः रात के अंतिम प्रहर में होता है ।
- पान मसाला, गुटखा, सिगरेट, शराब, चरस, अफीम, भाँग आदि सभी मादक (नशीली) चीजें धातु क्षीण करती हैं । इनसे दूर रहो ।
- लसीली (चिपचिपी) चीजें जैसे – भिंडी, लसौड़े आदि खानी चाहिए । ग्रीष्म ऋतु में ब्राह्मी बूटी का सेवन लाभदायक है । भीगे हुए बेदाने और मिश्री के शरबत के साथ इसबगोल लेना हितकारी है ।
- कटिस्नान करना चाहिए । ठंडे पानी से भरे पीपे में शरीर का बीच का भाग पेटसहित डालकर तौलिये से पेट को रगड़ना एक आजमायी हुई चिकित्सा है । इस प्रकार 15-20 मिनट बैठना चाहिए । आवश्यकतानुसार सप्ताह में एक-दो बार ऐसा करो ।
- प्रतिदिन रात को सोने से ठंडा पानी पेट पर डालना बहुत लाभदायक है ।
- बदहज्मी व कब्ज से अपने को बचाओ ।
- सेंट, लवेंडर, परफ्यूम आदि से दूर रहो । इन्द्रियों को भड़काने वाली किताबें न पढ़ो, न ही ऐसी फिल्में और नाटक देखो ।
- विवाहित हो तो भी अलग बिछौने पर सोओ ।
- हर रोज प्रातः और सायं व्यायाम, आसन और प्राणायाम करने का नियम रखो ।
- – निरोगता का साधन
ब्रह्मचर्य व प्राणायाम से शरीर की रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है। मन के रोग भी मिटते हैं, बुद्धि की चंचलता भी मिटती है और आत्मबल का विकास होता है ।
– पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
– पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
Brahmacharya Satsang - Pujya Bapuji
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