- भारत में सर्वोदय आंदोलन के प्रणेता आचार्य विनोबा भावे के बचपन की एक महत्त्वपूर्ण प्रेरक घटना है, जिसका महत्त्व वे बाद में समझ पाये । शैशवावस्था में वे अपनी माताजी के साथ कोंकण (महाराष्ट्र) में रहते थे तथा पिता बड़ौदा (गुजरात) में सरकारी शिक्षक के रूप में कार्यरत थे । त्यौहारों में तथा सरकारी छुट्टियों में उनके पिता परिवार से मिलने कोंकण जरूर जाते थे । घर जाते वक्त वे साथ में बच्चों के लिए विविध प्रकार के मिष्ठान भी ले जाते थे ।
- दीपावली का पर्व आया तथा विद्यालयों में छुट्टियाँ पड़ गयीं । विनोबाजी के पिता अपने परिवार से मिलने कोंकण के लिए रवाना हुए । इससे पहले उन्होंने पत्र द्वारा अपने घर आने की सूचना भेज दी थी । अतः माताजी ने बच्चों को ढाढ़स बँधाया कि ‘तुम्हारे पिता हर बार की तरह इस बार भी तुम लोगों के लिए मिठाई लायेंगे ।’
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- इधर बच्चे तो मिठाई की राह देख रहे थे । अतः पिता जी के पहुँचते ही सबने उन्हें घेर लिया । पिताजी ने जब सामान खोला तब उसमें से एक बड़ा बंडल निकला । बच्चों ने समझा कि यह तो मिठाई का पैकेट होगा । सबके मुँह में पानी आ गया ।
- पिता ने बच्चों की मनःस्थिति भाँप ली । अतः उन्होंने सबसे पहले वही बंडल खोला । लेकिन आश्चर्य ! इस बार मिठाई नहीं बल्कि कुछ किताबें थीं । बच्चे तो इसे देखकर हक्के बक्के रह गये । उनकी आशाओं पर पानी फिर गया। वे समझ नहीं पा रहे थे कि “पिताजी मिठाई के स्थान पर ये पुस्तकें क्यों लाये ? इसकी हमें क्या जरूरत है ? इससे क्या लाभ होगा ?” चेहरे पर उदासी छा गयी ।
- उधर माता जी ने नाराज होकर कहा : “मैंने तो बच्चों को आशा बँधाई थी कि आप उनके लिए नये साल की मिठाई लायेंगे । लेकिन इस बार आप मिठाई न लाकर किताबें उठा लाये । ऐसा क्यों ?”
- मास्टर साहब ने बड़े इत्मिनान से समझाते हुए कहा कि “ये साधारण पुस्तकें नहीं बल्कि उच्चकोटि के सत्शास्त्र हैं । इनके पठन-पाठन से हृदय में जो रस और आनंद उभरेगा, उसका मधुर प्रभाव कुछ घंटों के लिए ही नहीं वरन् जीवनपर्यन्त बना रहेगा । मिठाई की मिठास तो बच्चों को मन का गुलाम बना कर उनके स्वास्थ्य के जर्जरीभूत कर देगी । इसके विपरीत सत्शास्त्रों से प्राप्त अमृत तुल्य मिठास बच्चों को मन का स्वामी बनाकर उनके जीवन में नवीन क्रांति उत्पन्न कर सकती है । उन्हें मानव से महेश्वर बना सकती है । अतः इन पुस्तकों को ही नववर्ष की सच्ची मिठाई मानो ।”
- विनोबा भावे ने अपने बचपन के इस प्रसंग का स्मरण करते हुए कहा :
- ‘पिताजी की समझायी हुई बात को उस समय तो मैं पूर्णरूपेण समझ नहीं पाया । लेकिन अब पता लगा कि अमृततुल्य सत्शास्त्र ही सच्ची मिठाई है, जो जीवन में ईश्वरप्राप्ति के मार्ग पर दृढ़ता से चलने की प्रेरणा देते हैं ।’
- – ‘पर्वों का पुंज : दीपावली’ साहित्य से…
इस नूतन वर्ष को हम भी सत्शास्त्ररूपी मिठाई का मधुर आस्वाद लेकर मनायें तथा अपने जीवन को ईश्वरप्राप्ति के महान लक्ष्य की ओर अग्रसर करने का संकल्प करें ।
– पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
– पूज्य संत श्री आशारामजी बापू